गरीब नमो सत पुरुष कुन नमस्कार गुरु कीन्ही|
सुरनार मुनिजन साधवा, संतों सर्व दीदी ||1||
सतगुरु साहिब संत सब, दंडोत्तम प्रणाम|
आगे पीछे मध्य हुए, तीन कुन जा कुर्बान ||2||
नरकार निर्विषम, काल जाल भय भंजनम|
निर्लेपं निज निर्गुणम, अकाल अनूप बेसुन्न धुनं ||3||
सोहम सुरति समाप्तम, सकल समाना निरति लाये|
उजल हिरंबर हरदम, हो पर्व अथाह है, वार पार नहीं मध्यमम् ||4||
गरीब जो सुमिरत सिद्ध होयी, गन नायक गलताना|
करो अनुग्रह सोयी, पारस पद परवाना ||5||
आदि गणेश मनौं, गण नायक देवन देवा|
चरण कंवल ल्यो लौं, आदि अंत करुं सेवा ||6||
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परम शक्ति संगीतम, रिद्धि सिद्धि दाता सोयी|
अबीगत गुणः अतीतम, सतपुरुष निर्मोही ||7||
जगदंबा जगदीशम, मंगल रूप मुरारी|
तन मन अर्पण शीशम, भक्ति मुक्ति भंडारी ||8||
सुर नर मुनिजन ध्यवाएं, ब्रह्मा विष्णु महेश|
शेष सहंस मुख गावें, पूजन आदि गणेश ||9||
इन्द्र कुबेर सारिखा, वरुण धर्मराय ध्यानी|
सुमरथ जीवन जीका, मन इच्छा फल पावें ||10||
तेतीस कोटि आधार, ध्यानां सहंस अथासी|
उतरें भावजल पारा, कटि हैं यम की फंसी ||11||
सुबह का नित्यनियम लिखित संत रामपाल महाराज
|| मंत्र ||
अनाहद मंत्र, सुख सलाह मंत्र, अजोख मंत्र, बेसन मंत्र, निर्बाण मंत्र तेरा है ||1||
आदि मन्त्र, युगादि मन्त्र, अचल अभंगी मन्त्र, सदा सत्संगी मन्त्र, ल्युलीन मन्त्र गहन गम्भीर है ||2||
सोहम् सुभां मंत्र, अगम अनुराग मंत्र, निर्भय आदोल मंत्र, निर्गुण निर्बंध मंत्र, निश्चल मंत्र नेक है ||3||
गैबी गुलजार मंत्र, निर्भय निर्धार मंत्र, सुम्रत सुकृत मंत्र, अगामी अवांच मंत्र, अदलि मंत्र आलेख है ||4||
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फजलम फराक मंत्र, बिन रसना गुणलाप मंत्र, झिलमिल जहूर मंत्र, सरबंग भरपुर मंत्र, सैलान मंत्रसार है ||5||
रारंकार गरक मंत्र, तेजपुंज परख मंत्र, अदलि आबंध मंत्र, अजपनिरसंध मंत्र, अबीगत अनाहद मंत्र, दिल में दीदार है ||6||
वाणी विनोद मंत्र, आनंद अशोध मंत्र, खुर्सी करार मंत्र, अनभय उच्चार मंत्र, उजल मंत्र आलेख है ||7||
साहिब सतराम मंत्र, साईं निहकाम मंत्र, पारख प्रकाश मंत्र, हिरंबर हुलास मंत्र, मौले मलार मंत्र, पलक बीच खलक है ||8||
|| अथ गुरुदेव का अंग ||
गरीब, प्राप्तन वे प्रलोक है, जहां अदली सतगुरु सार| भक्ति हेत सैन उतरे, पाया हम दीदार ||1||
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, अलल पंख की जात | काया माया न वहां, नहीं पांच तत का गत ||2||
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, उजल हीरम्बर आदि | भालका ज्ञान कमान का, गालत है सर संधि ||3||
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, सुन्न विदेशी आप| रोम – रोम प्रकाश है, दीन्हा अजपा जाप ||4||
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गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, मगन किए मुस्तक प्यारा प्यार प्रेम का, गगन मंडल गर गैप ||5||
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, सिंध सुरति की सायं उर अंतर प्रकाशीय, अजब सुनाए बैन ||6||
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, सुरति सिंधु की साल| बजर पौल पत खोल कर, ले गया झीनी गेल ||7||
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, सुरति सिंधु के तीर| सब संतान सर ताज है, सतगुरु अदली कबीर ||8||
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, सुरति सिंधु के माही| शब्द स्वरूपी अंग है, पिंड प्राण बिन छाही ||9||
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, गलताना गुलजार| वार पार कीमत नहीं, नहीं हल्का नहीं भर ||10||
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, सुरति सिंधु के मांझ| अंत्यों आनंद पोख है, बन सुनाए कुंज ||11||
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, सुरति सिंधु के नाल पीतांबर ताखी धर्यो, बानी शब्द रिसाल ||12||
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, सुरति सिंधु के नाल गवन किया पारलोक से, अलल पंख की चाल ||13||
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, सुरति सिंधु के नाल ज्ञान जोग और भक्ति सब, दीन्ही नजर निहाल ||14||
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गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, बेप्रवाह अबंध| परम हंस पूर्ण पुरुष, रोम-रोम रवि चंद ||15||
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, है जिंदा जगदीश| सुन्न विदेशी मिल गया, छत्र मुकुट है शीश ||16||
गरीब, सतगुरु के लक्षण कहूं, माधुरे बेन विनोद| चार वेद शत शास्त्र, कह अथारा बोध ||17||
गरीब, सतगुरु के लक्षण कहूं, अचल विहंगम चल| हम अमरापुर ले गया, ज्ञान शब्द सर घाव ||18||
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, तुरिया केरे तीर| भागल विद्या बनी कहिन, छाने नीर अरु खीर ||19||
गरीब, जिंदा जोगी जगत गुरु, मालिक मुर्शाद पीव| काल कर्म लागे नहीं, नहीं शंका नहीं सीव ||20||
गरीब, जिंदा जोगी जगत गुरु, मालिक मुर्शाद पीर| दहू दीन झगडा मंड्या, पाया नहीं शरीर ||21||
गरीब, जिंदा जोगी जगत गुरु, मालिक मुर्शाद पीर| मर्या भालका भेद से, लगे ज्ञान के तीर ||22||
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, तेज पुंज के अंग| झिल मिल नूर जहर है, नर रूप सेट रंग ||23||
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, तेज पुंज की लोय| तन मन अरपून देखता है कुन, होनी होय सु होय ||24||
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गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, खोले बज्र किवार| अगम दीप कूं ले गया, जहां ब्रह्म दरबार ||25||
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, खोले बज्र कपाट| अगम भूमि कूं गम करि, उतरे औघाट घाट ||26||
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, मारी ग्यासी गेन| रोम – रोम में सालती, पलक नहीं है छैन ||27||
गरीब, सतगुरु भालका खांच कर, लाया बन जू एक| स्वांस उभारे सालता, पड़्या कलेजे छेक ||28||
गरीब, सतगुरु मर्या बन कस, खैबर ग्यासी खैनच| भरम कर्म सब जार गए, लायी कुबुद्धि सब ऐंच ||29||
गरीब, सतगुरु आए दया करि, ऐसे दीन दयाल| बंदी छोड़ बिरद तास का, जठराग्नि प्रतिपाल ||30||
गरीब, जठराग्नि सैन राखिया, पियाया अमृत खीर | जुगन – जुगन सत्संग है, समझ कुटन बेपीर ||31||
गरीब, जूनी संकट मिले हैं, औंधे मुख नहीं आया | ऐसा सतगुरु सेयिये, जाम से चलो छोड़े ||32||
गरीब, जाम जौरा जाए डरें, धर्म राय के दूत| चौदा कोटि न चंप ही, सूर्य सतगुरु की कूट ||33||
गरीब, जाम जौरा जाए दरांए, धर्म राय धराए धीर| ऐसा सतगुरु एक है, अदली असल कबीर ||34||
पृष्ठ 7
गरीब, जाम जौरा जाए डरें, मितेन कर्म के अंक| कागज कीरा दरगाह दयि, चौदह कोटि ना चंप ||35||
गरीब, जाम जौरा जासे डरें, मितेन कर्म के लेख | अदली असल कबीर हैं, कुल के सतगुरु एक ||36||
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, पाहुंच्य मांझ निदान| नौका नाम चढ़ा कर, पार किए परमाणु ||37||
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, भाऊ सागर के माही| नौका नाम चढ़ा कर, ले राखे निज थाही ||38||
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, भाऊ सागर के बीच | खेवत सब कुन खेवता, क्या उत्तम क्या नीचे ||39||
गरीब, चौरासी की धार में, बहे जात है जीव ऐसा सतगुरु हम मिल्या, ले प्रसाया पीव ||40||
गरीब, लाख चौरासी धार में, बहे जात हैं हंस| ऐसा सतगुरु हम मिल्या, अलख लखाया बंस ||41||
गरीब, माया का रस पी कर, पैर गए दो नाएं | ऐसा सतगुरु हम मिल्या, बास दिया सुख चैन ||42||
गरीब, माया का रस पी कर, हो गए दामादोल| ऐसा सतगुरु हम मिल्या, ज्ञान जोग दिया खोल ||43||
गरीब, माया का रस पी कर, हो गए भूत ख्वाइस| ऐसा सतगुरु हम मिल्या, भक्ति दायी बक्सीस ||44||
पृष्ठ 8
गरीब, माया का रस पी कर, पैर गए पत चार | ऐसा सतगुरु हम मिल्या, लोयन संख उघार ||45||
गरीब, माया का रस पी कर, डूब गए दहू दीन| ऐसा सतगुरु हम मिल्या, ज्ञान योग प्रवीण ||46||
गरीब, माया का रस पी कर, गए शत दाल गरत गोर| ऐसा सतगुरु हम मिल्या, प्रगति लिए बहोर ||47||
गरीब, सतगुरु कौन क्या देंगे, देने को कुछ नहीं| सम्मान कूं सता किया, सेउ भींत चढ़ाही ||48||
गरीब, सर साते की भक्ति है, और कुछ नहीं बात| सर के सात पाए, अवगत अलख अनाथ ||49||
गरीब, सीस तुम्हारा जाएगा, कर सतगुरु कून दान| मेरा मेरी छाड़ दे, यही गोयी मैदान ||50||
गरीब, सीस तुम्हारा जाएगा, कर सतगुरु की भेंट| नाम निरंतर लीजिए, जाम की लगान न फिंट ||51||
गरीब, साहिब साहे सतगुरु भये, सतगुरु से भये साध| ये तीनो अंग एक हैं, गति कछु अगम अगढ़ ||52||
गरीब, साहिब से सतगुरु भये, सतगुरु से भये संत| धर – धर भेश विशाल अंग, खेलें आदि और चींटी ||53||
गरीब, ऐसा सतगुरु सेयिये, बेग उतारे पार| चौरासी भ्रम मेटाहिं, आवा गवन निवार ||54||
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गरीब, अंधे गुनगे गुरु घने, लंगड़े लोभी लाख| साहिब सेन परचे नहीं, काव बनावां साख ||55||
गरीब, ऐसा सतगुरु सेयिये, शब्द समाना होये| भाऊ सागर में डूबें, पार लगावें सोए ||56||
गरीब, ऐसा सतगुरु सेयिये, सोहम सिंधु मिलाप| तुरिया मध्य आसन करें, मेताएं तीनों ताप ||57||
गरीब, तुरीय पर पुरिया महल, पार ब्रह्म का देश ऐसा सतगुरु सेयिये, शब्द विज्ञान नेस ||58||
गरीब, तुरीय पर पुरिया महल, पार ब्रह्म का धाम ऐसा सतगुरु सेयिये, हंस करें निहकाम ||59||
गरीब, तुरीय पर पुरिया महल, पार ब्रह्म का लोक| ऐसा सतगुरु सेयिये, हंस पथावें मोख ||60||
गरीब, तुरीय पर पुरिया महल, पार ब्रह्म का द्वीप| ऐसा सतगुरु सेयिये, राखे संग समीप ||61||
गरीब, गगन मंडल गाड़ी जहां, पार ब्रह्म स्थान| सुन्न शिखर के महल में, हंस करें विश्राम ||62||
गरीब, सतगुरु पूर्ण ब्रह्म हैं, सतगुरु आप लेख| सतगुरु रमता राम हैं, यामीन में न मेख ||63||
गरीब, सतगुरु आदि अनादि हैं, सतगुरु मध्य हैं मूल| सतगुरु कुँ सिजदा करूँ, एक पलक नहीं भूल ||64||
पृष्ठ 10
गरीब, पट्टन घाट लखैयां, अगम भूमि का भेद | ऐसा सतगुरु हम मिल्या, अष्ट कमल दल छेद ||65||
गरीब, पत्तन घाट लखैयां, अगम भूमि का भाव | ऐसा सतगुरु हम मिल्या, अष्ट कमल दल सेव ||66||
गरीब, प्रपत्तन की पीठ में, सतगुरु ले गया मोहि| सर सात सौदा हुआ, अगली पिछली खोही ||67||
गरीब, प्रपत्तन की पीठ में, सतगुरु ले गया साथ| जहां यहां माणिक बाइकिन, पारस लगा हाथ ||68||
गरीब, प्रपत्तन की पीठ में, है सतगुरु की हाट| जहां हीरे माणिक बाइकिन, सौदागर सयों सात ||69||
गरीब, प्रपत्तन की पीठ में, सौदा है निज सार| हम कुँ सतगुरु ले गया, औघात घाट उतारा ||70||
गरीब, प्रपत्तन की पीठ में, प्रेम प्यारे खूब| जहां हम सतगुरु ले गया, मतवाला महबूब ||71||
गरीब, प्रपत्तन की पीठ में, मतवाले मस्तान| हम कुँ सतगुरु ले गया, अमरापुर स्थान ||72||
गरीब, बैंक नाल के अंतरे, त्रिवेणी के तीर| मान सरोवर हंस हैं, बानी कोकिल कीर ||73||
गरीब, बैंक नाल के अंतरे, त्रिवेणी के तीर| जहां हम सतगुरु ले गया, चुवा अमीरस शीर ||74||
पृष्ठ 11
गरीब, बैंक नाल के अंतरे, त्रिवेणी के तीर| जहां हम सतगुरु ले गया, बंदी छोड़ कबीर ||75||
गरीब, भंवर गुफा में बैठ कर, अमी महारस जोख| ऐसा सतगुरु मिल गया, सौदा रोकम रोक ||76||
गरीब, भंवर गुफा में बैठ कर, अमी महारस तोल| ऐसा सतगुरु मिल गया, बजर पौल दायी खोल ||77||
गरीब, भंवर गुफा में बैठ कर, अमी महारस जोख| ऐसा सतगुरु मिल गया, ले गया हम प्रलोक ||78||
गरीब, पिंड ब्रह्माण्ड सेन अगम हैं, न्यारी सिंधु समाध| ऐसा सतगुरु मिल गया, देखा अगम अगढ़ ||79||
गरीब, पिंड ब्रह्माण्ड सेन अगम हैं, न्यारी सिंधु समाध| ऐसा सतगुरु मिल गया, दिया अखाए प्रसाद ||80||
गरीब, औघट घाटि उतरे, सतगुरु के उपदेश| पूर्ण पद प्रकाशन, ज्ञान जोग प्रवेश ||81||
गरीब, सुन्न सरोवर हंस मन, नहाया सतगुरु भेद| सुरति निरति परछा भ्या, अष्ट कमल दाल छेद ||82||
गरीब, सुन्न बेसुन्न सेन अगम है, पिंड ब्रह्माण्ड सेन न्यार
पृष्ठ 12
शब्द समाना शब्द में, अवगत वार न पार ||83||
गरीब, सतगुरु कौन कुर्बान जा, अजब लाखाया देस पार ब्रह्म प्रमाण है, निरालंभ निज नेस ||84||
गरीब, सतगुरु सोहम नाम दे, गुज बिराज विस्तार| बिन सोहम देखे नहीं, मूल मंत्र निज सार ||85||
गरीब, सोहम सोहम धुन लागे, दर्द बंद दिल माहिन| सतगुरु परदा खोल हीन, परलोक ले जाहिं ||86||
गरीब, सोहम जाप आजाप है, बिन रसना होये धुन| चढे महल सुख सेज पर, जहां पाप नहीं पुन ||87||
गरीब, सोहम जाप आजाप है, बिन रसना होये धुन| सतगुरु दीप समीप है, नहीं बस्ती नहीं सुन्न ||88||
गरीब, सुन्न बस्ती सेन रहित है, मूल मंत्र मन माही| जहां हम सतगुरु ले गया, आगम भूमि सत थाही ||89||
गरीब, मूल मंत्र निज नाम है, सूरत सिंधु के तीर| गैबी बनी अरस में, सुर नर धारें न धीर ||90||
गरीब, अजब नगर में ले गया, हम कुँ सतगुरु आन झिलके बिम्ब आगाध गति, सूट चादर तान ||91||
गरीब, अगम अनाहद दीप है, अगम अनाहद लोक| अगम अनाहद गवन है, अगम अनाहद मोख ||92||
गरीब, सतगुरु पारस रूप हैं, हमरी लोहा जात|
पृष्ठ 13
पलक बीच कंचन करें, पलटन पिंडरू गात ||93||
गरीब, हम तो लोहा कहीं हैं, सतगुरु बने लुहार| जुगन – जुगन के मोर्चे, तोड घड़े घनसार ||94||
गरीब, हम पशु जन जीव हैं, सतगुरु जात भिरंग| मुर्दे सेन जिंदा करें, पलट धरती हैं अंग ||95||
ग़ैरब, सतगुरु सिकलीगर बने, यौह तन तेग देह| जुगन-जुगन के मोर्चे, खोवैं भरम संदेह ||96||
गरीब, सतगुरु कांड कपूर हैं, हमरी तुनका देह| स्वाति सीप का मेल है, चांद चकोरा नेह ||97||
गरीब, ऐसा सतगुरु सेयिये, बेग उधारे हंस| भाऊ सागर आवे नहीं, जौरा काल विद्वान ||98||
गरीब, पत्तन नगरी घर करे, गगन मंडल गेनार| अलल पंख ज्युं सांचराए, सतगुरु अधम उधार ||99||
गरीब, अलल पंख अनुराग है सुन मंडल रहे थेर| दास गरीब उधारिया, सतगुरु मिले कबीर ||100||
||साहिब कबीर की वाणी गुरुदेव के अंग से||
कबीर दंडवत गोविन्द गुरु बंधु अविजन सोय| पहले भये प्रणाम तीन, नमो जो आगे होय ||1||
कबीर, गुरु को कीजे दंडवत, कोटि कोटि परनाम| कीत न जाने भृंगको, यों गुरुकारी आप समान ||2||
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कबीर, गुरु गोविन्द कर जाणिए, रहिए शब्द समय| मिलाए ताऊ दंडवत बंदगी, नहीं पलपल ध्यान लगाय ||3||
कबीर, गुरु गोविन्द दोनो खड़े, किसके लागों पाए| बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दिया मिलाय ||4||
कबीर, सतगुरु के उपदेश, सुनिया एक बिचार| जो सतगुरु मिलता नहीं, जाता यमके द्वार ||5||
कबीर, यम द्वारे में दूत सब, करते खैंच तानी| उन्ते कबु न छूटा, फिरता चारों खानी ||6||
कबीर, चारी खानी में भरमता, कबहु न लगता पार| सो फेरा सब मिति गया, सतगुरुके उपकार ||7||
कबीर, सात समुंद्र की मासी करुण, लेखि करुण बनिराय| धरती का कागड़ करूं, गुरु गुण लिखा न जाय ||8||
कबीर, बलिहारी गुरु अपना, घरी घरी सौबार| मानुष्ते देवता किया, करत न लागी बार ||9||
कबीर, गुरुको मानुष जो जीना, चरणामृतको पान| ते नर नरके जाहिंगे, जन्म जन्म होए स्वान ||10||
कबीर, गुरु मानुष करिजांते, ते नर कहिए अंध| होयेन दुखी संसार में, आगे यमका फँद ||11||
कबीर, ते नर और हैं, गुरुको कहते और|
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हरिके रुठे ठौर है, गुरु रुठे नहीं ठौर ||12||
कबीर, कबीरा हरिके रूठते, गुरुके शरण जाए| कहे कबीर गुरु रूठते, हरि नहीं गर्म सहाय ||13||
कबीर, गुरुसो ज्ञान जो लीजिए, देखिये दान| बहुतक भोंडू बहिगाये, राखी जीव अभिमान ||14||
कबीर, गुरु समान दाता नहीं, जाचक शिष्य समान तीन लोक की संपदा, सो गुरु दीन्ही दान ||15||
कबीर, तन मन दिया तो भला किया, शिरका जैसी भर| जो कबु कहे मैंने दिया, बहुत सही शिर मार ||16||
कबीर, गुरु बड़े हैं गोविंद से, मन में देख विचार | हरि सुमरे सो वारी हैं, गुरु सुमरे होये पार ||17||
कबीर, ये तन विष की बेलदी, गुरु अमृत की खान| शीश दिए जो गुरु मिले, तो भी सदा जान ||18||
कबीर, सात द्वीप नौ खंड में, गुरु से बड़ा ना कोय| कर्ता करे न कर सके, गुरु करे सो होए ||19||
कबीर, राम कृष्ण से बड़ा, तीनहुँ भी गुरु कीन्ह| तीन लोक के वे धानी, गुरु आगे अधीन ||20||
कबीर, हरि सेवा युग चार है, गुरु सेवा पल एक|
पृष्ठ 16
तासु पांतर न तुलाएं, संतान किया विवेक ||21||
||सतगुरु महिमा||
(सच्चे गुरु की महिमा) (साहिब गरीबदास जी की वाणी) गरीबदास जी की वाणी
सतगुरु दाता हैं काली माही, प्राण उधार उतरे साईं
सतगुरु दाता दीन दयालम, जाम किंकर के तोरे जालम ||
सतगुरु दाता दया कराहिं, अगम दीप सें सो चल आहिं
सतगुरु बिना पंथ नहीं पावे, सतगुरु मिलेन तो अलख लखावां॥
सतगुरु साहिब एक शरीरा, सतगुरु बिना न लागे तीर|
सतगुरु बाण विहंगम मारें, सतगुरु भव सागर साईं तारें।
सतगुरु बिना न पावे पेंदा, हूंठ हाथ गड़ लीजाए कैंदा|
सतगुरु दर्द बंद दरवेसा, जो मन कर है दूर अंदाज ||
सतगुरु दर्द बंद दरबारी, उतरे साहिब सुन्य अधरी
सतगुरु साहिब अंग न दूजा, ये सर्गुण वे निर्गुण पूजा।
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गरीब, निर्गुण सर्गुण एक है, दूजा भरम विकार|
निर्गुण साहिब आप हैं, सरगुण संत विचार ||
सतगुरु बीना सुरति नहीं पाते, खेल मांड्या है सर के साते|
सतगुरु भक्ति मुक्ति केदानी, सतगुरु बिना न छूटे खानी॥
मार्ग बिना चल रहा है तेरा, सतगुरु मेते तिमर अँधेरा|
अपने प्रांदांजो करही, तनमन धनसब अर्पण धरहिं॥
सतगुरु शंख कला दर्शवैन, सतगुरु अर्श विमान बिठावै।
सतगुरु भाऊ सागर के कोली, सतगुरु पार निभाएं डोली।
सतगुरु मांदार पिदार हमारे, भाऊ सागर के तारन हारे|
सतगुरु सुंदर रूप अपरा, सतगुरु तीन लोक सैन न्यारा।
सतगुरु परम पदारथ पूरा, सतगुरु बिना न बाजारेन तूरा|
सतगुरुआवादन कर देवैं, सतगुरु राम रसायन भवैं।
पृष्ठ 18
सतगुरु पासु मानस करि दरैन, सिद्धि दे कर ब्रह्म विचारे ||
गरीब, ब्रह्म बिनानी गर्म हैं, सतगुरु शरणालेन|
सुभर सोया जाणिए, सब सेती अधीन||
सतगुरु जो चाहे सो करही, चौदह कोटि दूत जाम दर्शिन|
ऊट भूत जाम त्रास निवारे, चित्र गुप्त के कागज फरे|
(साहिब कबीर जी की वाणी) कबीर परमेश्वर की वाणी
गुरु ते अधिक न कोई ठरयी|
मोक्षपंथ नहीं गुरु बिनु पाई॥
राम कृष्ण बत्तीहुनपुर राजा|
तिं गुरु बंदी कीन्ह निज काजा॥
गेहि भक्ति सतगुरु की करहिं|
आदि नाम निज हृदय धरहिं॥
गुरु चरणन से ध्यान लगावे|
अंत कपट गुरु से ना लावे ||
गुरु सेवा में फल सरबस आवे |
गुरु विमुख नर पार न पावे॥
पृष्ठ 19
गुरु वचन निश्चय कर माने|
पूरे गुरु की सेवा थाने ||
गुरुकी शरण लीजाए भाई| जाते जीव नरक नहीं जय ||
गुरु कृपा कटे यं फाँसी|
विलम्ब न होए मिले अविनाशी||
गुरु बिनु कहहु न पाया ज्ञान|
ज्यों थोथा भुस छादे किसान ||
तीर्थ व्रत अरु सब पूजा| गुरु बिन दाता और ना दूजा ||
नौ नाथ चौरासी सिद्ध|
गुरु के चरण सेव गोविंदा॥
गुरु बिन प्रेत जन्म सब पावे|
वर्ष सहस्र गर्भ सो रहावे॥
गुरु बिन दान पुण्य जो करायी|
मिथ्या होए कबहुं नहीं फलहिं ||
गुरु बिनु भरम न छूटे भाई|
कोटि उपाय करें चतुराई ||
गुरु के मिले कटे दुख पापा|
जन्म जन्म के मितेन संतापा||
गुरु के चरण सदा चित्त दीजाए|
जीवन जन्म सुफल कर लीजाए ||
पृष्ठ 20
गुरु भगता मम आतम सोयी| वाके हृदय रहुं समोयी॥
अदसथ तीर्थ भ्रम भ्रम आवे |
सो फल गुरु के चरणो पावे||
दशावान अंश गुरु को दीजाए|
जीवन जन्म सफल कर लीजाए ||
गुरु बिन होम यज्ञ नहीं कीजे|
गुरु की आज्ञा माही रहीजे ||
गुरु सुरतरु सुरधेनु समाना|
पावे चरण मुक्ति पर्व॥
तन मन धन अर्पी गुरु सेवा|
होये गलतं अपडेटशाहिन लेवे||
सतगुरुकी गति हृदय धरे|
और सकल बकवाद निवाराए ||
गुरु के सन्मुख वचन न कहे|
सो शिष्य रहनागहनी सुख लहे॥
गुरु से शिष्य करे चतुराई|
सेवा हीन नरक में जय ||
रमेनी : शिष्य होए सरबस नहीं वाराए|
ही कपाट मुख प्रीति उचारे ||
जो जीव कैसे लोक सीधी |
पृष्ठ 21
बिन गुरु मिले मोहे नहीं पाई ||
गुरु से करे कपट चतुराई|
तो हंसा भव भरमीन आई||
गुरु से कपट शिष्य जो राखे|
यम राजा के मुग्दर चाखे ||
जो जन गुरु की निंदा कार्य |
सूकर शवन गर्भ में परी ||
गुरु की निंदा सुने जो काना |
ताको निश्चय नरक निदान ||
अपने मुख निंदा जो करि| परिवार सहित नरक में परी ||
गुरु को तजाए भजाए जो आना|
ता पशुव को फोकट ज्ञान ||
गुरुसे बैर करे शिष्य जॉयी|
भजन नाश अरु बहुत बिगोई ||
पीड़ी सहित नरकमें परिहाए|
गुरु आज्ञा शिष्य लोप जो करिहाए ||
चेलो अथवा उपासक होई|
गुरु सन्मुख ले झूठ संजोयी ||
निश्चय नरक परे शिष्य सोयाई|
वेद पुराण भाशत सब कोई ||
पृष्ठ 22
सन्मुख गुरुकी आज्ञा धाराए|
अरु पिछे ताए सकल निवाराए॥
सो शिष्य घोर नरकमें परिहाए|
रुधिर राधा पीवे नहीं तारि है ||
मुखपर वचन करे परमाणु |
घर पर जय करे विज्ञान ||
जहां जावे तहां निंदा करी|
सो शिष्य क्रोध अग्नि में जरयी ||
ऐसे शिष्यको थाहर नहीं|
गुरु विमुख लोछत है मनमाहीं ||
बेद पुराण कहे सब साखी|
साखी शब्द सब योन भाखी ||
मानुष जन्म पाए कर खोवे|
सतगुरु विमुख जुगजुग रोवे॥
गरीब, गुरु द्रोही की पेड़ पर| जेई पग आवे बियर||
चौरासी निश्चय पढे| सतगुरु कहाँ कबीर ||
कबीर, जान बूज़ साची तजाए| करें झूठे से नेह||
जाकी संगत हे प्रभु| स्वप्न में भी ना देह||
ताताए सतगुरु सरना लीजाए|
कपट भाव सब दूर करे॥
पृष्ठ 23
योग यज्ञ जप दान करावे|
गुरु विमुख फल कबहुं न पावे॥
(शिष्य की पालना)
एक शिष्य का समर्पण
दोकर जोरी गुरुके आगे| करिबाहु विंती चरणन लागे ||
अति शीतल बोले सब बैना| मेटा सकल कपटके भैना ||
हे गुरु तुम हो दीनदयाल|
मैं हूं दीन करो प्रतिपाला ||
बंदीछोर में अतिहि अनाथा|
भवजल बूदत पकडो हाथ ||
दीजाए उपदेश गुप्त मंत्र सुनाओ|
जन्म मारन भवदुख छुड़ाओ ||
योन अधीन होवे शिष्य जबिन|
शिष्य पर कृपा करे गुरु तबिन||
गुरुसे शिष्य जब दीच्छा मांगे|
मन कर्म वचन धराए धन आगे॥
ऐसी प्रीति देखी गुरु जाभिन|
गुप्त मंत्र कहै गुरु तबीं ||
भक्ति मुक्ति को पंथ बतावाए|
बूरो होंको पंथ छूटावाए ||
पृष्ठ 24
ऐसे शिष्य उपदेशहिं पाई|
होये दिव्य दृष्टि पुरुष जय ||
(गुरु सेवा महात्म्य)
गुरु सेवा की महिमा
गंगा यमुना बद्री समते |
जगन्नाथ धाम हैं जीते ||
भ्रमे फल प्राप्त न जेतो|
गुरु सेवा में पावे फल टेटो ||
गुरुमहातमकोवर्णपारा|
वर्णशिवसंकादिक और अवतार ||
गुरुको पूर्ण ब्रह्मकर जाने|
और भाव कभी नहीं आने ||
जिन बातों से गुरुदुख पावे|
तिन बातंको दूर बहावे॥
अष्ट अंगसे दंडवत प्राणायाम|
संध्या प्रात करे निष्काम ||
(गुरु चरणामृत का महात्मय)
गुरु के चरण अमृत की महिमा
कोतिक तीर्थ सब कर आवे|
गुरु चरनफल तुरंत ही पावे॥
पृष्ठ 25
चरणामृत कदाचित पावे|
चौरासी कटे लोक सिद्धवे ||
कोतिक जप तप कराये करावे
वेद पुराण सबे मिली गावे ||
गुरुपद राज मस्तक पर देवे| सो फल तत्काललाही लेवे||
तो गुरु सत जो सार चिनावे|
यम बंधन से जीव मुक्तावे ||
गुरु पद सेव बिड़ला कोई| जापर कृपा साहिब की होयी ||
गुरु महिमा शुकदेव जू पाई|
चड़ी विमान बैकुंठ जय॥
गुरु बिनु बेद पड़े जो प्राणि|
समझे न सारे रहे अग्यानी ||
सतगुरु मिले ताऊ अगम बतावाए|
जमकी आंच ताही नहीं आवे ||
गुरु से ही सदा हिट जानो|
क्यों भोले तुम चतुर स्यानो ||
गुरु सीधी चढ़ी ऊपर जाई|
सुखसागर में रहे समय ||
गौरी शंकर और गणेश |
सभी लीन्हा गुरु उपदेश ||
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शिव बिरंचि गुरु सेवा कीन्हा|
नारद दीक्षा ध्रु को दीन्हा ||
गुरु विमुख सोइ दुख पावे|
जन्म जन्म सोया दहकावे ||
गुरु सेवा सो चतुर स्यान|
गुरु पत्र कोई और न आना ||
(साहिब कबीर के उपदेश)
कबीर परमेश्वर के उपदेश
कबीर, जो तोको कांटा बोवे, ताको बो तू मूर्ख|
तोही फुलके फूल हैं, वाको हैं त्रिशूल||
कबीर, दुर्बल को न सताये, जाकी मोती है|
बिना जीवकी स्वांस, लोह भस्म हवा जाए||
कबीर, आप थगैये, और न ठगिए कोय|
आप थगाएं सुख गर्म है, औरों थगे दुख होए ||
कबीर, ये दुनिया में एके, छड़ी दी तू ऐसी|
लेना होए सो लयिले, उठी जातू है पंथी ||
कहै कबीर पुकारिके, दोई बात लखिले|
एक साहिब की बंदगी, व भूखोंको कच्छू दे||
कबीर इष्ट मिलाए और मन मिलाए मिला सकल रस रीति|
कहे कबीर तहां जाए, रह संतान की प्रीति।
पृष्ठ 27
कबीर, ऐसी बनी बोलिए, मनका आपा खोये
औरन को शीतल करें, आप ही शीतल होए|
कबीर, जगमें बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होए|
या आप को दारी दे, दया करे सब कोए ||
कबीर, कहते को कहीं जान दे, गुरु की सीख तू ले|
सकात और स्वंको, पूर्ण जवाब न दे||
कबीर, हस्ति चढ़िये ज्ञानके, सहज दुलीचा दारी|
स्वान रूप संसार है, भूसन दे झकमारी ||
कबीर, कबीरा कहो दरे, सिर्पर सिरजनहार|
हस्ति चढ़ी दरिए नहीं, कुकर भुसे हज़ार||
कबीर, आवत गारी एकाई, उल्टा होए अनेक|
कहे कबीर नहीं उलटिये, रहे एक की एक ||
कबीर, गाली ही से उपाय, कल काश और मीच|
हार चले सो साधु है, लागी मारे सो नीच ||
कबीर, हरिजन तो हरा भला, जीतन दे संसार|
हारा ताऊ हरि पुत्र मिलाए, जीता यमकी लार॥
कबीर, जेता घट तेता माता, घट घट और स्वभाव|
जा घाट हार ना जीत है, ता घाट ब्रह्म समाव||
कबीर, कथा करो करतारकी, सुनो कथा करतार|
आन कथा सुनिये नहीं, कहे कबीर विचार ||
पृष्ठ 28
कबीर, बंदे भी कर बंदगी, जो चाहाए दीदार|
औसर मानुष जन्मका, बहुरी न बारांबर ||
कबीर, बंजारे के बेल ज्यों, भरमी फिर्यो बहू देश|
खांड लाडी भुस खत है, बिन सतगुरु उपदेश||
||सुमिरन का अंग||
कबीर, सुमरन मार्ग सहज का, सतगुरु दिया बताय|
स्वांस-उस्वांस जो सुमिरता, एक दिन मिली आई||
कबीर, माला हंस-उस्वांस की, फिरेंगे निजदास|
चौरासी भरमाए नहीं, काटे कर्मकी फैन्स||
कबीर सुमन सार है, और सकल जंजाल|
आदि अंत मढ़ी सोढ़िया, दूजा देखा ख्याल ||
कबीर, निजसुख आत्म राम है, दूजा दुख अपार|
मनसा वाचा कर्मना, कबीरा सुमिरन सार ||
कबीर, दुख में सुमिरन सब करे,
सुखमें करे न कोये|
जे सुख में सुमिरन कराएं तो दुख कहेको होए ||
कबीर, सुखमें सुमिरन न किया, दुखमें किया याद|
कहे कबीर ता दासी, कौन सुने फिरियादी ||
कबीर, सैन यों मति जाणियो, प्रीति घाटे मम चित्त|
मरुं तो तुम सुमिरत मरुं, जीवत सुमिरन नित्य॥
पृष्ठ 29
कबीर जाप तप संयम साधना सब सुमिरंके माहिन|
कबीरा जाने रमजान, सुमिरन सम कछू नहीं ||
कबीर, जिन हरि जैसा सुमरिया, ताको तैसा लाभ|
ओसान प्यार न भाग्ययी, जबलग धसाए न आब||
कबीर, सुमिरन की सुधि यों करो, जैसे दाम कंगाल|
कहे कबीर विसरे नहीं, पल पल लेट संभाल ||20||
कबीर, सुमिरन सो मन लाये, जैसे पानी में|
प्राण तजाए पल बीसरे, दास कबीर कहीं दीन||
कबीर, सत्यनाम सुमिरिले, प्राण जाहिंगे छूत|
घर के प्यारे आदमी, चलते लेगें लूट ||
कबीर लूट सके तो लूटाई, राम नाम है लूटी|
पीछे फिरि पछिताहुगे, प्राण जाएगी छूटी||
कबीर, सोया तो निष्फल गया, जागो सो फल ले|
साहिब हक्क ना राखसी, जब मांगे तब दे ||
कबीर, चिंता तो हरि नामकी, और न चित्तवे दास|
जो कच्छु चितवे नाम बिनु, सोया कल्कि पंख ||
कबीर, जबहि सत्यनाम हृदय धरो,
भयो पापको नास|
मनौ चिंगी अग्निकी, परी पुराने घास ||
कबीर, राम नामको सुमिरता, अधम टायरे अपार|
पृष्ठ 30
अजामेल गणिका सुपच, सदना, सिवरी नार||
कबीर, स्वप्न में बैरायके, जो कोई कहे राम|
वाके पग की पांवड़ी, मेरे तन को चाम||
कबीर, नाम जापत कन्या भालि, सकात भला न पुत|
छेरिके गल गल्थना, जगह दूध न मूट||
कबीर, सब जग निर्धना, धन्वन्त नहीं कोए
धन्वन्त सोया जाणिये, राम नाम धन होये॥
कबीर, कहता हूं कहीं जात हूं, कहूं बजा के ढोल|
स्वांस जो खाली जात है, तीन लोक का मोल ||
कबीर, ऐसे मेंहगे मोलका, एक हंस जो जय|
चौड़ा लोक नहीं पट्टे, कहे धूरी मिलाय ||
कबीर, जीवन थोराही भला, जो सत्य सुमिरन होए|
लाख बरसका जीवन, लेखे धराए न कोये।
कबीर, कहता हूं कहीं जात हूं, सुनता है सब कोए
सुमिरन बेटा भला होगा, नातर भला न होयेगा||
कबीर, कबीरा हरिकी भक्ति बिन, ढिग जीवन संसार|
धुआँ कासा धौलहरा, जात न लागे बार||
कबीर, भक्ति भाव भादों नाडी, सबे चली घरराय|
सरिता सोया जाणिये, जेष्ठमास ठहराय||
कबीर, भक्ति बीज बिनसाए नहीं, आय परें सौ झोल|
पृष्ठ 31
जो कंचन विष पराए, घटाए न ताको मोल||
कबीर, कामी क्रोधी लालची, इनपे भक्ति न होए|
भक्ति करे कोई शूरमा, जाति बरन कुल खोये ||
कबीर, जबलग भक्ति सहकामना, तब लगी निष्फल सेव|
कहे कबीर वे क्यों मिलाए, निष्कामी निज देव।
||अथ सातों वार की रमेनी||
सातों वार सममूल बखानो,
पहेर घड़ी पल ज्योतिष जानो ||1||
एतवार अंतर नहीं कोई, लगी चांचरी पड़ में सोया ||2||
सोम संभल करो दिन राती,
दूर करो ना दिल की कांति ||3||
मंगल मन की माला फिरो,
चौदह कोटि जीत जाम जीरो ||4||
बुद्ध विनानी विद्या दीजाए,
सत सुकृत निज सुमिरन कीजाए ||5||
ब्रहस्पति अभ्यास भये बैरागा,
तांते मन राते अनुराग ||6||
शुक्र शाला कर्म बताया,
जड़ मन सरोवर नैया ||7||
शनिश्चर स्वस माहिन समोया,
पृष्ठ 32
जब हम मकर्तार मग जोया ||8||
राहु केतु रोकेन नहीं घाटा,
सतगुरु खोलेन बजर कपाटा ||9||
नौ ग्रह नमन करें निर्बाण,
अभिगत नाम निरालंब जाना ||10||
नौ ग्रह नाद समोये नासा,
सहंस कमल दल कीन्हा बास ||11||
दिशासूल दहौंडिस का खोया,
निरालंभ निर्भए पद जोया ||12||
कथिन विषम गति रहे हमारी,
कोई न जानत है नर नारी ||13||
चंद्र समुल चिंतामणि पाया,
गरीबदास पद पढाही समय ||14||
||अथ सर्व लक्षण ग्रंथ||
गरीब उत्तम कुल करतार दे, द्वाददास भूषण संग|
रूप द्रव्य दे दया कर, ज्ञान भजन सत्संग |1|
सील संतोष विवेक दे, क्षमा दया इक्तार|
भाव भक्ति वैराग दे, नाम निरालंभ सार |2|
जोग युक्ति स्वास्थ्य जगदीश दे, सूक्ष्म ध्यान दयाल|
अकाल अकीं अजन्म जाति, अतसिद्धि नौनिधि ख्याल |3|
पृष्ठ 33
स्वर्ग नरक बांचे नहीं, मोक्ष बंधन सें दूर|
बड़ी गरीबी जगत में, संत चरण राज धुर |4|
जीवत मुक्ता सो कहो, आशा तृष्णा खंड|
मन के जीते जीत है, क्यों भरमें ब्रह्मण्ड |5|
साला कर्म शरीर में, सतगुरु दिया लखाय|
गरीबदास गलतां पद, नहीं आवे नहीं जाय |6|
चौरासी की चाल क्या, मो सेती सुन लेह |
चोरी जारी करता है, जाके मुंहदे खे |7|
काम क्रोध मद लोभ लट, छूट रहे बिकराल|
क्रोध कसाई उर बसे, कुशाबद छूरा घर घाल |8|
हर्ष शोग है श्वास गति, संशय सर्प शरीर |
राग द्वादश बड़े रोग हैं, जाम के पड़े जंजीर |9|
आशा तृष्णा नदी में, डूबे तीनो लोक|
मनसा माया बिस्तारि, आत्म आत्म दोष |10|
एक शत्रु एक मित्र हैं, भूल पडिरे प्राण|
जाम की नगरी जाएगी, शब्द हमारा मान |11|
निंद्य बिंद्य छोड़ दे, संतान स्यों कर प्रीत|
भाऊसागर तीर जात है, जीव मुक्त अतीत |12|
जे तेरे उपाय नहीं, तो शब्द साखी सुन लेह|
साखी भूत संगीत है, जाओ लावो नेह |13|
पृष्ठ 34
स्वर्ग सात आसमान पर, भटकत है मन मूढ़|
खालिक तो खोया नहीं, इसी महल में दूध |14|
कर्म भर भारी लागे, सांस सूल बंबूल|
डाली पानो डोलते, परसत नहीं मूल|15|
स्वसा ही में सार पद, पद में स्वरा सार |
दम देही का खोज कर, आवागमन निवार|16|
बिन सतगुरु पावे नहीं, खालिक खोज विचार|
चौरासी जग जात है, चिनहट नहीं सार |17|
मर्द गार्ड में मिल गए, रावण से रणधीर|
कंस केश चनूर से, हिरणकुश बलबीर |18|
तेरी क्या बुनियाद है, जीव जन्म धरलेट|
गरीबदास हरि नाम बिन, खाली पारसी खेत |19|
||अथ ब्रह्म वेदी||
ज्ञान सागर अति उजागर, निर्विकार निरंजनम् |
ब्रह्मज्ञानी महाध्यानी, सत सुकृत दुख भंजनम ||1||
मूल चक्र गणेश बास, रक्त वर्ण जहां जाणिए |
किलियम जाप कुलेन ताज सब, शब्द हमारा मानिये ||2||
स्वाद चक्र ब्रह्मादि बास,
जहां सावित्री ब्रह्म रहाईं|
ॐ जाप जापंत हंसा, ज्ञान जोग सतगुरु कहां ||3||
पृष्ठ 35
नाभि कमल में विष्णु विशंभर,
जहां लक्ष्मी संग बस है|
हरियम जाप जापंत हंसा, जानत बिड़ला दास है ||4||
हृदय कमल महादेव देवम, सती पार्वती संग है |
सोहम जाप जापंत हंसा, ज्ञान जोग भी रंग है ||5||
कंठ कमल में बसे अविद्या,
ज्ञान ध्यान बुद्धि नासही |
लील चक्र मध्य काल कर्म,
आवत बांध कुन फांसही ||6||
त्रिकुटी कमल परम हंस पूर्णा,
सतगुरु समरथ आप हैं|
मन पौना सम सिंध मेलो, सुरति निराति का जाप है ||7||
सहंस कमल दल भी आप साहिब,
जीन फूलन मध्य गंध है|
गरीब रिया जगदीश जोगी, सत समरथ निर्बंध है ||8||
मीनी खोज हनोज हरदम, उलट पंथ की बात है |
इला पिंगुला सुषमन खोजो,
चल हंसा औघात घाट है ||9||
ऐसा जोग विजोग वर्णो, जो शंकर ने चित धर्या|
कुम्भक रेचक द्वादस पलटे,
पृष्ठ 36
काल कर्म तीस तेन दर्या ||10||
सुन्न सिंघासन अमर आसन, अलख पुरुष निर्बाण है
अति लयूलीन बेदीन मालिक,
कादर कुन कुर्बान है ||11||
है निर्सिंह अबंध अभिगत, कोटि बैकुण्ठ नखरूप है॥
अपरंपरार दीदार दर्शन, ऐसा अजब अनूप है ||12||
घूरें निसान अखंड धुन सुन सोहम बेदी गाये |
बजाएँ नाद आगाज़ है,
जहान ले मन थहरैये ||13||
सुरति निरति मन पवन पलटे, बननाल सम कीजीये |
सर्बे मूर्ख अस्थिर, अमी महारस पीजिये ||14||
सप्त पुरी मेरुदंड खोजो, मन मनसा गाह रखिये |
उधान भंवर आकाश गमनम,
पांच पचीसों नखिए ||15||
गगन मंडल की साल कर ले, बहुरी न ऐसा दावा है |
चल हंसा परलोक पथौं,
भाऊ सागर नहीं आव है ||16||
कंद्रप जीत उदित जोगी, शत कर्मी यौं खेल है
अंभा मालनी हर गुडें, सुरति निरति का मेल है ||17||
सोहम जाप अजप थरपो, त्रिकुटी संयम धुनि लागे|
पृष्ठ 37
मान सरोवर नान हंसा,
गैंग सहनस मुख जीत बगाए ||18||
कालिन्द्री कुर्बान कादर, अबीगत मूर्ति खूब है
छत्र श्वेत विशाल लोचन, गलताना महबूब है ||19||
दिल अंदर दीदार दर्शन, बहार अंत न जाए
काया माया कहाँ बापुरी,
तन मन शीश चढ़ायिये ||20||
अबीगत आदि जुगाड़ी जोगी, सत पुरुष लयलीन है
गगन मंडल गलतां गैबी, जात अजात बेदीन है ||21||
सुखसागर रत्ननगर निर्भय, निज मुखबाणी गावाहिन|
झिन आकार अजोख निर्मल, दृष्टि मुष्टि नहीं आवाहिन ||22||
झिल मिल नूर जहर ज्योति, कोटि पदम उजियार है
बिल्कुल नैन बेसुनिया बिस्तर, जहां जहां दीदार है ||23||
अष्ट कमल दाल सकल रमता,
त्रिकुटी कमल मध्य निरख हिं|
श्वेत ध्वजा सुन गुमत आगे,
पचरंग झंडे फरक हीन ||24||
सुन्न मंडल सतलोक चलिये, नौ डर मुंड बिसुन्न है|
दिव्या चिसाम्यों एक बिंब देखा,
निज श्रवण सुनिधुनी है ||25||
पृष्ठ 38
चरण कमल में हंस रहते हैं, बहुरंगी बरियाम हैं
सूक्ष्म मूर्ति श्याम सूर्ती,
अचल अभंगी राम है ||26||
नौ सुर बंद निशंक खेलो,
दसमें डर मुखमूल है|
माली ना कूप अनूप सजनी, बिन बेली का फूल है ||27||
स्वांस उस्वांस पवन कुन पलटे,
नाग फनी कौन भूंछ है|
सुरति निरति का बांध बेड़ा,
गगन मंडल कुन कूंच है ||28||
सुन ले जोग विजोग हंसा, शब्द महल कुं सिद्ध करो
योह गुरुज्ञान विज्ञान बानी,
जीवत ही जग में मारो ||29||
उजल हीरंबर स्वेत भौंरा, अक्षय वृक्ष सत बाग है
जीतो काल बिसाल सोहम, तार तीवर बैराग है ||30||
मनसा नारी कर पनिहारी, खाखी मन जहां मालिया
कुम्भक काया बाग लगाय,
फूले हैं फूल बिसालिया ||31||
कच्छ मच्छ कुरंभ धौलम्,
शेष सहंस फन गावहिं|
पृष्ठ 39
नारद मुनि से रतन निश्चयिन,
ब्रह्म पार न पावहिं ||32||
शंभु जोग विजोग साध्य, अचल आदिग समाध है|
अभिगत की गति नहीं जानी,
लीला अगम आगाध है ||33||
सनकादिक और सिद्ध चौरासी,
ध्यान धारा है तास का |
चौबीसौं अवतार जापत है,
परम हंस प्रकाश का ||34||
सहंस अथासी और तातीसन, सूरज चंद चिराग हैं|
धर अंबर धरनी धर रत्ते,
अभिगत अचल बिहाग है ||35||
सुर नर मुनिजन सिद्ध और साधिक,
पार ब्रह्म कून रातत है|
घर घर मंगलाचार चौरी,
ज्ञान जोग जहां बताता है ||36||
चित्र गुप्त धर्म राय गावैं, आदि माया ओंकार है
कोटि सरस्वती गोद करता है,
ऐसा पारब्रह्म दरबार है ||37||
कामधेनु कल्पवृक्ष जाकैं,
पृष्ठ 40
इंद्र अनंत सुर भारत है|
पारबती कर जोर लक्ष्मी, सावित्री शोभा करत है ||38||
गंधर्व ज्ञानी और मुनि ध्यानी,
पांचों तत्व खवास हैं|
त्रिगुण तीन बहुरंग बाजी, कोई जन बिरले दास हैं ||39||
ध्रुव प्रह्लाद आगाध है, जनक बिदेही जोर है
चले विमान निदान बिट्या,
धर्मराज की बंद तोर हैं ||40||
गोरख दत्त जुगाड़ी जोगी, नाम जालंधर लीजिए
भर्तरी गोपी चंदा सीझे, ऐसी दीक्षा दीजिये ||41||
सुल्तानी बजीद फरीदा, पीपा परचे पैइया|
देवल फेर्य गोप गोसाईं,
नाम की छांव छिवैय्या ||42||
चान छिवायी गौ जीवायी, गणिका चढ़ी बिमान में|
सदना बकरे कुन मत मारे,
पाहुंचे आ निदान में ||43||
अजामेल से अधम उधारे, पतित पावन बिरद तास है
केशो आन भैया बंजारा,
शत दाल कीन्ही हास है ||44||
धना भक्त का खेत निपाया, माधो दयी सीखलत है
पृष्ठ 41
पांडा पांव बुझाया सतगुरु,
जगन्नाथ की बात है ||45||
भक्ति हेतु केशो बंजारा, गाया रैदास कमाल द|
हे हर हे हर होती आई, गुण छाया और पाल द ||46||
गैबि ख्याल बिसाल सतगुरु, अचल दिगंबर थीर हैं
भक्ति हेत आन काया धर आए,
अबीगत सतकबीर है ||47||
नानक दादू अगम अगाधू, तेरी जहाज खेवत सही|
सुख सागर के हंस आए, भक्ति हिरंबर उर धारी ||48||
कोटि भानु प्रकाश पूरन, रोम रोम की लार है|
अचल अभंगी है सत्संगी, अभिगत का दीदार है ||49||
धन सतगुरु उपदेश देवा, चौरासी भ्रम मेट हिन
तेज पुंज आन देह धर कर,
विधि हम कौन भेंट हिं ||50||
शब्द निवास आकाशवाणी, यौह सतगुरु का रूप है
चांद सूरज ना पवन ना पानी,
ना जहां छाया धूप है ||51||
रहता रमता, राम साहब, अवगत अल्लाह लेख है
भोले पंथ बिटंब वादी, कुल का खाविंद एक है ||52||
रोम रोम में जाप ले, अष्ट कमल दाल मेल है
पृष्ठ 42
सुरति निरति कुन कमल पाठवो,
जहां दीपक बिन तेल है ||53||
हरदम खोज हनोज हाजिर, त्रिवेणी के तीर हैं
दास गरीब तबीब सतगुरु,
बंदी छोड़ कबीर है ||54||