महाराज चरन सिंह जी के समय की बात है – एक बार एक सत्संगी सेवा करने के लिए ब्यास आया हुआ था,
दस दिन की सेवा खतम होने के बाद वो घर जाने वाला था कि एक दिन पहले उसकी टांग टूट गयी, वह काफी
दुखी हुआ और उसके मन में ख्याल आया कि दस दिन ब्यास आके सेवा की और उसके बदले में टांग टूट गयी
मालिक को संगजक काव्यल गया जान चलाया
मालिक तो सब जानते हैं, जब महाराज जी संगत को दर्शन देने के बाद अपनी कोठी जा रहे थे तो रस्ते में उस
भाई से मिले, और उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा कि आज रात को भजन पर जरूर बैठना
,
जब वह रात को भजन करने के लिए बैठा तो महाराज जी उसकी सुरत ऊपर के मंडलों में ले गए और उसको
दिखाया कि जिस बस में उसने वापिस जाना था उसका एक्सीडेंट हो गया था, और उस एक्सीडेंट में उसकी मौत
हो गयी थी, महाराज जी ने उसकी सुरत को उसकी deadbody भी दिखाई, क्योंकि वह सतगुरु की शरण में
आया हुआ था इसलिए महाराज जी ने उसके कर्म काटकर उसकी सिर्फ टोग ही टूटने दी
जब उसकी सुरत नीचे सिमटी तो उसका रो रो कर बुरा हाल हुआ और उसने मालिक से अरदास की कि मालिक बक्श दो-बक्श दो हाल हुआ
सार – सतगुरु पर हमें पूरा विश्वास होना चाहिए, वो हमारा बाल भी बांका नहीं होने देते,और जो हमारे साथ होता
है उसमें कहीं न कहीं हमारा अच्छा ही होता है….